राहगीर की मंज़िल
राहगीर की मंज़िल
निकल पड़ा राहगीर तू,
तेरी मंज़िल है कहाँ?
चला जा रहा तू,
आखिर रुकेगा कहाँ?
क्या छूटा तेरे पीछे,
तूने कभी न सोचा?
कौन रूठा तुझसे,
तूने कभी न जाना?
चला जा रहा तू,
कभी तो थकेगा?
क्या खोया तूने,
क्या ही तू पायेगा?
जानता है सब तू,
तेरी मंजिल है कहाँ?
लेकिन किसी मोड़ पर
अंगडाई के ज़ोर पर
कभी यही रुक कर
किसी छाँव में
ये मत सोच लेना
क्या सही क्या गलत?
राह बदल मत लेना
किसी एक एहसास में
मंजिल दूर है पर
उसे तुझे है पाना।
चलते रहना है तुझे,
जहाँ तेरी मंज़िल ले जाए
जो निकल पड़ा राहगीर तू।