राधा-कृष्ण और प्रेम
राधा-कृष्ण और प्रेम
राधा कृष्ण का प्यार आज भी संसार में पावन पवित्र प्रेम में गिना जाता है। उन जैसा प्रेमी ना कोई हुआ, ना है, ना होगा। ब्रज क्षेत्र से जाने के बाद जब श्रीकृष्ण जी बहुत समय पश्चात राधा के सामने आए तो राधा जी ने मन में अनेक सवाल थे। श्री कृष्ण ने जो जवाब दिया वह कविता के रूप में आपके सम्मुख है।
बहुत वर्षों के बाद
एक बार जब फिर
कृष्ण आये बृज क्षेत्र।
भेंट हुई राधा से जब
मन में प्रश्न थे अनेक।।
राधे बोली कृष्ण से -
सुनो मेरे चित चोर
माखनचोर, नंद किशोर ।
तुमने कभी भी मुझसे
क्या किया नहीं था प्रेम ?
यदि किया होता जो प्रेम
तो क्या जा बसते द्वारिका देश ।।
दिल दिया कान्हा तुम्हें
हुई न किसी और की।
विरहाकुल हृदय रहा
प्रतीक्षारत हर सांस थी।
क्यों रास किया कान्हा
क्यों बंसी मधुर बजाई ।
क्यों दिया प्रेम जगाए दिल में
क्यों बन गए तुम हरजाई ।।
शिकायतें थीं अनगिनत
राधा की घनश्याम से
पर थी सच्ची बात।
अनुत्तरित से कृष्ण थे
ना था कोई जवाब।
लब खामोश थे पर
नयनों की भाषा मुखर थी।
दो बूंद अश्रु नैनों में
राधा के हृदय को भिगो गये।
समझ गई राधा मन में
अपने कान्हा के एहसास।
अनुत्तरित प्रश्न जैसे
सारे सम्पूर्ण हो गए।
प्यार है तपस्या
और त्याग का नाम
राधा को समझा गये।
राधा को समझा गये।।