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Fahima Farooqui

Tragedy

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Fahima Farooqui

Tragedy

क़ीमत

क़ीमत

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बिक जाता हैं चंद सिक्को में,

ईमान की क़ीमत कुछ भी नहीं।


ग़रज़ सजदे कराती है इंसानों के,

भगवान की क़ीमत कुछ भी नहीं।


जाहिल का होता राजतिलक देखो,

विद्वान  की क़ीमत कुछ भी नहीं।


रोज़ चढ़ता बलि कुर्सी की ख़ातिर,

यह इंसान की क़ीमत कुछ भी नहीं।


जब चाहा उठा के फेंक दिया सड़क पे,

ग़रीब जान की क़ीमत कुछ भी नहीं।


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