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Rishabh Tomar

Abstract Romance

3.2  

Rishabh Tomar

Abstract Romance

प्यास है ये प्यार की

प्यास है ये प्यार की

2 mins
590


चाहे तुम खुलके बरसलो, ए मेरे प्यारे नयन

प्यास है ये प्यार की, अन्तर्हृदय की है तपन


तुम बिना वीरान हो मन बनकर तपस्वी सा रहा

दर्द गम विरह की पीड़ा सहके भी कुछ न कहा

पर उठे प्रश्नों के जादू से हुई कुछ कुछ चुभन

टूटता है धैर्य उर का न सही जाती जगन


चाहे तुम खुलके बरसलो, ए मेरे प्यारे नयन

प्यास है ये प्यार की, अन्तर्हृदय की है तपन


मन है मेरा एक मंदिर जिसके तुम आराध्य हो

नेत्र, स्वसों, धड़कन में आ बसे तुम साध्य हो

एकतारा प्रेम का ये रूह बन करती भजन

तन निरंतर हो तपस्वी कर रहा तेरा जपन


चाहे तुम खुलके बरसलो,ए मेरे प्यारे नयन

प्यास है ये प्यार की,अन्तर्हृदय की है तपन


संग तुम्हारे जिंदगी उपवन सी मेरी खिल उठी

मन की चादर प्रेम के धागों से मेरी सिल उठी

जिस तरह है मृत्यु शाश्वत उस तरह है ये कथन

प्यार तुमसे करता हूँ ज्यो करता हूँ कोई हवन


चाहे तुम खुलके बरसलो, ए मेरे प्यारे नयन

प्यास है ये प्यार की, अन्तर्हृदय की है तपन


जख्मों से तन तर बत्तर है दर्द भी भरपूर है

यादों की नमकीन भी मुझको सहर्ष मंजूर है

पर मुझे वातास के जादू से उठती है जलन

मन विकम्पित हो रहा है बढ़ रही उर में थकन


चाहे तुम खुलके बरसलो, ए मेरे प्यारे नयन

प्यास है ये प्यार की, अन्तर्हृदय की है तपन


गर फूल है जो तन मेरा तो रंग से छाये हो तुम

मेरी पदचापों के संग चलता है वो साये हो तुम

जितना हूँ ख़ुद में बसा में उतने ही हो तुम सजन

करते हो परिपूर्ण मुझको इसलिये तुमको नमन


चाहे तुम खुलके बरसलो, ए मेरे प्यारे नयन

प्यास है ये प्यार की, अन्तर्हृदय की है तपन।


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