प्यार या जिम्मेदारी
प्यार या जिम्मेदारी
अब ये इश्क़ मुहब्बत समझ आता नहीं ग़ालिब
अब तो तकरार में ही दिन रात गुज़र जाते हैं
उसकी आँखों का नशा भी चढ़ता नहीं सिर पर
ना हम अब पहले से यू ही गुनगुनाते है
जिसको देख कर दिन रात भूल जाते थे
आज पास होने पे भी नहीं हम मुस्कुराते है
प्यार तो आज भी उन्ही से है लेकिन
उनको खुश रखने में शायद बहुत थक जाते है