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Surendra kumar singh

Classics

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Surendra kumar singh

Classics

प्यार उमड़ आया है

प्यार उमड़ आया है

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प्यार उमड़ आया है मौसम में,

जाने कैसा प्यार,

दूर की आहट बिलकुल पास।

जब भी विश्वास डगमगाता है,

उम्मीदें जलने लगती हैं,

स्वप्न टूटकर बिखर जाते हैं,

अभिशाप की परछाइयाँ

इर्द गिर्द मंडराने लगती हैं,

अभिशप्त प्रयासों के पाखंड की

सीढियां चढ़ता हुआ,

सन्नाटे और आतंक के अनगिनत

बैरियर्स को तोड़ता हुआ,

अक्सर वो चला आता है हमारे पास

और प्यार उमड़ आता है मौसम में,

जाने कैसा प्यार,

दूर की आहट बिल्कुल पास।


कल जब उसे लगने लगा था,

उसके साम्राज्य का तम्बू

उखड़ने लगा है,

जाने उसने क्या सोचा,

जाने उसने क्या किया,

अचानक टूटे हुये तार जुड़ने लगे हैं।

संवाद की माया चटखने लगी है,

सेवाओं का संजाल सिमटने लगा है,

ब्यवस्था के विभिन्न अवयवों के बीच

खींची गयी सम्मिलन की अनैतिक लकीरें

स्पष्ट उभरने लगी हैं,

और ऐसे ही हालात में

संस्कृतयों पर अपसंस्कृतियों के आक्रमण से

छीनी गयी जमीन का बाजार भाव उतरने लगा है,

और उसपर मज़े की बात तो ये हुई है,

अतीत की अनगिनत घटनाओं की

सम्बद्धता पर जमी धूल झड़ने लगी है,

शायद यथार्थ

भावुक तटबंधों की सीमाओं को तोड़कर

उन्मुक्त हवा में उड़ने वाला है,

सम्भालो अपने आप को

हमारे भाग्यविधाता

जनगणमन अधिनायक,

प्यार उमड़ आया है मौसम में

जाने कैसा प्यार

दूर की आहट बिल्कुल पास।



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