पूस की रात
पूस की रात
पूस की आधी ठंडी सी रात हो
ठिठुरा सा काँपता गात हो
बीच रखी मध्यम सी आँच हो
बस कुछ जनो का साथ हो।
मीठी मीठी रसभरी बात हो
छाई हुई थोड़ी थोड़ी बदरी हो
उस पर तन से लिपटी चदरी हो
पास ही एक खाट बिछरी हो।
जहाँ बूढ़ी दादी भी लेटी हो
जैसे हम सब जनों की पहरी हो
आँखों आँखों मे कटती रात हो
खिड़की से झाकँती बौछार हो।
होठों पर धीमी धीमी रागिनी हो
जैसे कोई माया आ के ठहरी हो
वाह जी क्या बात निशां कहरी हो
ऐसे ही पूस की हर रात सुनहरी हो।
