पूर्णता
पूर्णता
अधूरापन ?
क्यों है ?
आकांक्षाएं कठोर है ...
दृश्य है इन्ही में कहीं मेरी पूर्णता ?
कसक मरोड़ती है
आह ! दर्द भी कितना सुंदर है....
नैन कुछ नहीं कहते
मूक हूँ , तुम्हारी दृष्टि से ओझल
पाषाण हृदय ... रूठना भी नहीं जानता
स्वीकार्य हर आगमन का
कोई प्रतिकार नहीं .
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ईश पूजा शायद यही है ....