पुरानी अलमारी
पुरानी अलमारी
बंद पड़ी उस पुरानी अलमारी को खोला आज
देख हैरान हूं मैं हसरतें, ख्वाहिशें, चाहते,
उम्मीदें बंद पड़ी है अब भी दराजों में
देख मुझे करने लगी गुजारिशें
अपनी आजादी की खुद से शर्मसार हूं मैं
याद करके नासमझी के उस पल को
आखिर क्यों बंद रखा अब तक
ये तो वे सब सपने हैं
बंद रह कर भी पूरी होते रही बारी-बारी।
