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पति का बटुआ

पति का बटुआ

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आज समय अनोखा है

हर जगह पर धोखा है

पति पत्नी का नहीं तो

क्या पत्नी पति का होता है।


अपने जरूरत पूरा करने को

पत्नी-पति पर आश्रित होता है

परन्तु आज समय बदल गया है

हर किसी का खजाना होता है।


अब कुछ खरीदने को नहीं 

पति का बटुआ खोलता है

स्वतंत्र जीवन जीने को

खुद कमाया करता है।


हर खुशी पाने को पत्नी

पति का बराबरी करती है

चांद सितारों की दुनिया

खुद बनाया करती है।


वह किसी पर आश्रित नहीं

रहना पसंद अब करती है

खुद पैरों के बल चलकर

सुंदर जीवन बिताती है।


औरों को सुखचैन देती है

और खुद सुखचैन पाती है

वह हर कार्य में अपना

वर्चस्व हमेशा दिखाती है।


पत्नी अब नहीं किसी का

बटुआ खोलने जाती है

खुद उतना सब पैसा

पलक झपकते ले आती हैं।


पत्नी नहीं किसी पर अब

आश्रित रखती हैं

पत्नी नहीं किसी पर अब

आश्रित रखती हैं।


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