पति का बटुआ
पति का बटुआ
कभी खुशी कभी ग़म का फ़साना है वह,
कभी नायाब,तो कभी खिलौना है वह,
मेरी ज़रूरतों का खज़ाना है वह,
तसल्ली से भरा करदौना है वह।
मेरी हसरतें बस, टिकी हैं आज उस पर,
मेरी ख्वाहिशें भी, बिछी है आज उस पर,
मेरी दोस्ती भी, मिटी आज उस पर,
जो पूंजी थी बची वो, बटी आज सब पर।
कभी ढील देता, ये खुशियों के कारण,
कभी कसता रहता ये अपनों के कारण,
कभी बच्चों का प्यार करता, इसे बेबस अकेला,
कभी चुपके से, मैं भी करती इसमें झमेला।
ये कहता है - न जाने कैसी दुविधा में हूं मैं,
कभी दर्द सहता, कभी सीधा हूं मैं,
मैं हर दुख-दर्द का मर्ज़ हूं मैं,
इंसां की गर्म जेब का फ़र्ज़ हूं मैं।
गर समझे हो मुझको, तो हासिल भी कर लो,
तुम जितना भी चाहो, मुझे जेब में भर लो,
सुंदर-सी रेत पर चलता, धीमा कछुआ हूं मैं,
किसी जेब में ना टिका, वह बटुआ हूं मैं।
मेरे पति का बटुआ, बहुत ही प्यारा है,
मेरी ख्वाहिशों का लगे वह पिटारा,
वह तंग हाल में भी, लगता है सबसे न्यारा,
मैं पत्नी हूं उनकी और वह है मेरी आंखों का तारा।
यह बच्चों की खुशियां, यह बड़ों की ख़ुमारी,
ये बटुए की ताकत ही है, खुशियां हमारी,
हे दाता ! मेरे पति के बटुए को आबाद रखना,
और पति के साथ बटुए को भी सलामत रखना।