“ पथ दर्शक ”
“ पथ दर्शक ”
मै राहगीर अनजान हूं ,
निकला राह कठोर ,
पथदर्शक पथ मोड़ना ,
मंगल पथ की ओर !!
पूर्व की उस भोर को ,
चंहुदिशा ले आये ,
कर प्रकाशित राह को ,
मंगल-मंगल गाये !!
चंहु दिशा का जीवन मेरा,
यायावर बन रहता ,
मृदुलभाषी गुण आपका,
रखता चित संजोया !!
मन कहता है आपकी,
कैसे अंगुल छोड़ूं,
अंगुल पकड़ कर आपकी ,
मैं पथ पर चढ़ आया !!
मिलाना और बिछड़ना ,
यह नियत का खेल ,
जीवन की इस राह पर ,
मिलना अनेकों बार !!
नये पथ को बनाने ,
निकले पथदर्शक पथ ओर ,
मंगलमय हो यात्रा ,
मंगल पथ की ओर !!