यह दुनिया कितनी बदल गयी
यह दुनिया कितनी बदल गयी
यह दुनिया कितनी बदल गयी ,
हर जगह विश्वास की
धज्जियां उड़ गईं
यह दुनिया बाजार बन गयी ,
रंग रोगन तो बहुत है पर
खरीददारी घट गयी ।
हर कोई अपने में ही मस्त है ,
न किसी की परवाह है ,
न किसी सी मतलब है ,
धुन है बस आगे बढ़ने की ,
फिर अपनों को रौंधते हुए ,
अपनों का गला घोटते हुए ,
दगा विश्वासघात करते हुए,
इज्जत की परवाह किस को है ,
साहब! दुनिया दुनिया कहाँ रही?
दुनिया अब दुनियादारी जो बन गयी
मन उठ सा गया दुनियादारी से ,
पर क्या करें प्राण
अटके हैं दुनिया में,
बस कुछ तो बिखरा पड़ा है
इस दुनिया में ,
रिश्ते नाते प्रेम तेरा मेरा सब कुछ ,
पर लोगों ने दुनिया को दारी बनाकर ,
सब कुछ ख़त्म कर दिया ।
बाजार बना दिया है ,
सब लाभ चाहते हैं ,
रिश्तों के मोल लगाने से भी नहीं चूकते ,
जहाँ लाभ वहां प्रेम ।
यह दुनिया कितनी बदल गयी ,
हर जगह विश्वास की धज्जियां उड़ गईं।
