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Hajari lal Raghu

Others

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Hajari lal Raghu

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यह दुनिया कितनी बदल गयी

यह दुनिया कितनी बदल गयी

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यह दुनिया कितनी बदल गयी ,

हर जगह विश्वास की

धज्जियां उड़ गईं

यह दुनिया बाजार बन गयी ,

रंग रोगन तो बहुत है पर

खरीददारी घट गयी ।


हर कोई अपने में ही मस्त है ,

न किसी की परवाह है ,

न किसी सी मतलब है ,

धुन है बस आगे बढ़ने की ,

फिर अपनों को रौंधते हुए ,

अपनों का गला घोटते हुए ,

दगा विश्वासघात करते हुए,

इज्जत की परवाह किस को है ,

साहब! दुनिया दुनिया कहाँ रही?


दुनिया अब दुनियादारी जो बन गयी

मन उठ सा गया दुनियादारी से ,

पर क्या करें प्राण

अटके हैं दुनिया में,

बस कुछ तो बिखरा पड़ा है

इस दुनिया में ,

रिश्ते नाते प्रेम तेरा मेरा सब कुछ ,

पर लोगों ने दुनिया को दारी बनाकर ,

सब कुछ ख़त्म कर दिया ।

बाजार बना दिया है ,

सब लाभ चाहते हैं ,

रिश्तों के मोल लगाने से भी नहीं चूकते ,

जहाँ लाभ वहां प्रेम ।

यह दुनिया कितनी बदल गयी ,

हर जगह विश्वास की धज्जियां उड़ गईं।



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