मैं नन्हा हूँ
मैं नन्हा हूँ
मैं नन्हा हूँ
यह कभी मत सोचना
मैं इस सृष्टि में
रंग उकेरूँगा
जहाँ तक मन करेंगा
वहाँ तक रंग भर दूंगा ।
मेरे चेहरे से
मालूम नहीं होता क्या ?
मैं कभी धरती को रंग देता हूं
कभी आसमान को
जब जब रंग भरा मैंने
तब से इतनी रंगीन है
यह सृष्टि ।
मेरी मुस्कान से तो
मृत गात में भी प्राण आ जाते है।
बहुत पहले
यह नागार्जुन जी ने कहा
आज मैं कहता हूं
मेरी आँखों मे देखो तो
एक लोक दृश्य मंडित है ।
मेरी नज़र धरती से
आसमान की ओर है
सम्पूर्ण ब्रह्मांड को
फिर से कायाकल्प कर
हर आंगन में मुस्कान
छोड़ कर अपने रंगों में
सूर्य तेज मिलना है
मुझे इस सृष्टि को
बहुत सुंदर बनाना है।