पता नही क्यूँ लोग..
पता नही क्यूँ लोग..
पता नही क्यूँ लोग ?
कटी पतंग जैसी जिंदगी जिते हैं !
वही गलतिया जाने क्यूँ ?...
बार - बार दोहरातें हैं !
खुद्द कि जिंदगी तमाशा बन बैठी...
समझही नही पाते हैं !
कहते यह तो सिर्फ झाँकी हैं ...
पिक्चर अभी बाकी हैं !
उनकी सोची समझी चाल ...
काश ! यह समझ पाते !
युंही अपनी जिंदगी नरक ना बनती
ना सबको किमत चुकांनी पडती !
धर्म जात पर उकसाना, दंगे फसाद करवाना !
मासूमसा चेहरा बनाके, काम आपण निकलना !
उनकी तो पुरानी आदत हैं हंम क्यूँ नही समझ पाते ?
जाने क्यूँ उनकी बहकावे मे बार -बार आते हैं !