STORYMIRROR

SUNIL JI GARG

Comedy Drama Romance

4  

SUNIL JI GARG

Comedy Drama Romance

पसेसिव दोस्त

पसेसिव दोस्त

1 min
283

जरा सी नींद क्या आई 

तुम चलीं गयीं मुझे छोड़ कर 

फिर कैसी दोस्त हो हमदम 

ऐसा किया न करो मुंह मोड़ कर 


माना ज़रूरी काम था तुम्हें 

पर मुझे पूछ लेतीं चल पड़ता 

ख्वाबों से निकल आता बाहर

दोस्त का कुछ फ़र्ज़ बन पड़ता 


अब फ़ोन पर क्या बतलाऊँ 

क्या हुआ तुम्हारे पीछे से 

कोई घंटी न सुनी, कह दिया

"कोई नहीं है", रजाई के नीचे से 


जल्दी वापिस आ जाओ दोस्त 

बड़ा तन्हा फील कर रहा हूँ 

बहुत अच्छी तरह जानता हूँ

इस वक़्त डिस्टर्ब कर रहा हूँ  


अब फ़ोन तुम काट भी दो 

मैं तो यूं ही बोलता रहूँगा 

इतनी पुरानी दोस्ती को 

रिश्ते के तराजू पर तोलता रहूँगा 


ऐसा रोज़ रोज़ जब होने लगे 

तब समझो हो गए तुम पसेसिव

अरे मस्त रहो खुद में व्यस्त रहो 

काहे को सोच रहे इतना नेगेटिव 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Comedy