प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
मैं हर बार लौटती रही
तुम्हें पुकारा कितनी बार
भावनाओं के बचे खुचे
अंतिम कुछ टुकड़े
मैं ही सुलगाती रही
घुलती रही तुम्हारे मौन में
कड़वी स्याही बनकर कि
यदा कदा तुम अपनी ही खोई
परम अभिव्यक्ति को पा लो
कर पाओ स्वयं से साक्षात्कार।

