पृथ्वी दिवस
पृथ्वी दिवस
चलो आज कुछ उल्टा लिखते हैं,
सत्य वही होगा,
पर "शब्द" अर्थ को घुमा देंगे,
बात नए सिरे से ,
कही जा सकती है,
समझा देंगे
आज "पृथ्वी दिवस" है,
पृथ्वी हम सब की---
अन्न-जल दायनी माँ,
पर हर मां की तरह भोली है,
कोई कोर कसर नही रखती,
संतानों के प्यार में
पर शून्य ही रही,वो,
हर माँ की तरह,
अधिकार में----
संताने दबंग हो गईं,
और सच्चाई देख माँ भी दंग हो गई,
तंग हो गई-----
एकला चलो रे ! का फार्मूला,
पृथ्वी भी अपना रही है,
पर संतानों को भी,
किये का-----
सबक सिखा रही है,
उपेक्षित सी माँ,
अब खुद ही,
संवरती जा रही है,
और संतान ?
अपने किये का
फल पा रही हैं।