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Vaibhav Dubey

Abstract

3  

Vaibhav Dubey

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प्रथम मिलन

प्रथम मिलन

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कुछ क्षणों के मिलन में नयन द्वार से

अति सरल उनका आवागमन हो गया

मन ये मंदाकिनी जैसा पावन हुआ

प्रेम में  हो मगन वृंदावन हो गया


जब मिले मन की बजने लगी घण्टियाँ

पलकें पट सी नयन उनके मंदिर लगे

श्वांस महकी थी यूँ यज्ञ का हो धुआं


उसने जो कुछ कहा मन्त्रों के स्वर लगे

देखकर हो गया शांत व्याकुल ये मन

जैसे ईश्वर से मेरा मिलन हो गया


मुस्कराने से उनके अधर जब खिंचे

सांझ की एक स्वर्णिम किरण बन गई

होके मदमस्त चुम्बन कपोलों पे जब 


बालियों ने किया कानों से ठन गई

केशुओं को हवा में बिखेरा था जब

नील से श्याम सारा गगन हो गया


मानसरोवर सी भोली थी छवि प्रेम के

केंद्र के रूप में दो नयन मिल गए

चल रही संग उनके प्रकृति झूमकर


पग जहां भी धरे तो सुमन खिल गए

ग्रीष्म, वर्षा, शरद, ऋतु बसन्ती, शिशिर 

संग हेमन्त  का  आगमन  हो गया


मुख लगे पूजा की जैसे थाली सजी

दो नयन खुल गए आरती हो गई

मुस्कराये  जो  उनके अधर तो लगा


पुष्प अर्पित हुए स्वीकृति  हो गई

करके स्पर्श  उनके  अधर  तर्जनी 

निज अधर पर धरी आचमन हो गया।


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