STORYMIRROR

Asha Jakar

Tragedy

3  

Asha Jakar

Tragedy

प्रकृति की पुकार

प्रकृति की पुकार

1 min
80



हे ईश्वर ,

तुमने ही सुंदर सलोनी धरती

पहाड़ नदी झरनों की अविरल गति

पर मानव तूने अपने स्वार्थ हेतु

मेरे सुंदर मनमोहक ,

प्राकृतिक सौंदर्य को ही बिगाड़ दिया ।

सुंदर पर्वतों को खण्ड -खण्ड कर दिया ।

40 मंजिला गगनचुंबी इमारतें तान दी।

एक नहीं असंख्य तान दी।

प्रकृति बेचारी क्या करें ?

आखिर कितना सहन करें ?

जो हरे भरे जंगल थे ,

उन जंगलों को उजाड़ दिया ।

ऊँचे- ऊँचे पेड़ों को काटकर उखाड़ दिया ।

बनाई सड़कें आवास और फैक्ट्रियाँ

फैक्ट्रियों से निकलती चिमनियाँ

चिमनियों से निकलता हुआ धुँआ

सड़कों पर धड़धड़ाते

वाहनों से निकलता धुँआ

बढ़ती आबादी फैलाया कचरा

किया भूमि को प्रदूषित

कहीं ध्वनि प्रदूषण ,कहीं वायु प्रदूषण

बेचारी धरती आखिर कैसे साँस ले ?

बेचारी रो रो कर कहे ,

हे मानव कुछ तो रहम करो ।

मेरा नहीं अपना तो ख्याल करो।

अगर मैं प्रदूषण से दब गई,

कैसे साँस लोगे ?

आखिर कैसे जीवन जीओगे ?

कैसे स्वस्थ रहोगे ?

अपनी माँ पर थोड़ा तो रहम करो।

यदि माँ स्वस्थ होगी ।

तभी तो बेटों का ,

जीवन स्वस्थ होगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy