कलमकार की स्याही पर दोहे
कलमकार की स्याही पर दोहे


कलमकार की स्याही ऐसी धूम मचाय ।
बाल्मीक की रमायण जन-जन कूँ हरषाय।
लेखकन कि लेखनी तो ऐसो खेल दिखाइ
हँसन लागत रोवतहै रोवतन को हँसाय
बिहारी के दोहिन ने रंगत ऐसी दिखाय।
जैसिंह दौड़े महल से राजसभा में आय।।
कवि चंदरवरदाई ने ऐसो कवित सुनाय।
पिरथिविराज खड़ो भयो सीधो बाणि चलाय।।
कलमन की झंकारि सुनी बड़े - बड़े घबराइ।
असी नही कर सकत जो कलम वही करजाइ।।
लेखक की कलम जबहीं करोना कूँ सुनाय।
सुनिकै मन कंपन लगहीं इसो दिरश्य दिखाय।।
कवियन के शबद ऐसी तीखि धार बहाय।
भरती जोश वीरन में रिपु पे वारि कराय।।