" गुरू "
" गुरू "
तुम बिन जीवन में फैला अंधियारा
तुम ही से आशा तुम ही से उजियारा
मिटा दो अज्ञानता की कालिमा को
फैला दो ज्ञान की रोशन लालिमा को
अ अनपढ़ से ज्ञ ज्ञानी मुझे बनाएं
मेरे सोएं भाग्य को पल में जगाएं
कर्ज तेरा प्राण देकर भी ना उतरे
सानिध्य में आकर भवसागर तरे
ना धन की इच्छा ना चाहत पद की
ना चाहिए मान बड़ाई ना वाह वाही
भूखा है प्यासा हैं तुम्हारे प्रेम भाव का
कुछ ना मांगे काटे जीवन अभाव का
दुख के अथाह सागर में जब डूब गया
ज्ञान प्रकाश में राह दिखा मुझे बचाया
पग पग पर मेरी परछाई बन साथ चले
कांटो भरा जीवन पथ चलना मुझे सिखाएं
मां पहली गुरु संसार से परिचय कराया
जीवन पथ पर हाथ पकड़ चलना सिखाया
गोविन्द से भी बड़ा दर्जा कबीर बताया
हृदय पुष्प अर्पण कर चरण शीश झुकाया।।
