कान्हा की प्रीत
कान्हा की प्रीत
श्याम तुम्हारा नाम लिखा है
मेरे अंतस के कागज पर।
मंजुल मूरत तेरी रहती
मेरे मन के सिंहासन पर।
नैन जुड़ाये मैं बैठी हूँ
एक झलक पाने को तेरी।
कान सदा रहते व्याकुल है
बंसी की धुन सुनने तेरी।
किस दिन भाग खुलेंगे मेरे
दर्शन मिलेंगे मुझे गिरधर
बरसेंगी कब बूँद कृपा की
मन बड़ा आकुल रहे गिरधर।
श्याम तुम्हारा नाम लिखा है
मेरे अंतस के कागज पर. ....
निस दिन ही मनुहार कहूँ मैं
छप्पन भोग बनाया मैंने।
माखन मिश्री दूध दही मलाई
भरकर थाल सजाया मैंने।
पलक पाँवड़े बिछा के बैठी
कान्हाजी भोग लगा जाओ।
कितनी चिरौरी रोज करूँ मैं
कान्हा मत इतना तरसाओ।
श्याम तुम्हारा नाम लिखा है
मेरे अंतस के कागज पर. ..
राधा को भी लेकर आना
साथ गोपियों को भी लाना।
फिर से बाजे सब की पायल
मुरली की तान सुना जाना ।
रुप सलोना बड़ा मनोहर
केश लुभाते हैं घुँघराले।
बाकी बाकी तेरी चितवन
सम्मोहित कर जादू डाले।
श्याम तुम्हारा नाम लिखा है
मेरे अंतस के कागज पर. ..