हाँ... मैं हिंदी हूँ.
हाँ... मैं हिंदी हूँ.
हाँ...हिंदी हूँ मैं
अक्षर-अक्षर जोड़कर नव शब्द बनाती हूँ,
कविता कहानी, लेख और गीत- ग़ज़ल बनकर
नये -नये रूपों में ढल जाती हूँ...
तरह-तरह के अलंकार और बिंदियों से
अपना रूप सजाती हूँ,
वेद ग्रंथों और पुराणों से लेकर
बच्चों की छोटी छोटी पुस्तिका मै ही बन जाती हूँ...
जीवन के सारे सुख-दुःख
और प्रेम-करूणा मुझमें समाहित है,
अपने अनुयायीयों को सारे रसों का
आस्वादन कराती हूँ...
सभी मेरे अपने हैं
और मैं सबका हो जाना चाहती हूँ,
बिछड़ों का मेल मिलाप और
रूठों का संधि मैं ही कराती हूँ...
अनगिनत रूपों में
अनेक प्रांतों में"बोली" बनकर विद्यमान हूँ,
सभी मेरे ही अभिन्न हिस्से हैं
फलो-फूलों नित आगे बढ़ो, शुभाआशीष देती हूँ.....
