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Yashpal Singh

Romance

3  

Yashpal Singh

Romance

"प्रियतमा"

"प्रियतमा"

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तुमसे पहले भी एक जीवन था,

तुम्हारे जाने के बाद भी एक जीवन होगा।

उलझा हुआ था मैं पहले,जैसे कोई पतंग की डोर।


फिर तुम आई....

वह पतंग जिसकी किस्मत में ज़मीं लिखी थी

उसकी डोरों को सुलझा तुमने आसमां दिखा दिया,

फिर तो उड़ने की एक लत सी लग गयी मुझे

तुम्हारे हाथों में अपनी डोर थमा,

निकल जाता आसमां को नापने।


पर उस दिन हवाओं के आगोश में,

कुछ ज्यादा ही आगे निकल आया था मैं,

वो हवाओं का कुसूर था,

तुमने मुझे ही मुल्ज़िम ठहरा दिया।


मैं तो बस एक पतंग था,

जिसकी किस्मत, 

उसकी डोर पकड़े,

तुम्हारे हाथों में थी।


पर तुमने हमारे और अपने बीच की वो डोर तोड़ दी,

शायद संभाल ना पायी, मेरे नए अप्रत्याशित रूप को।

अब तक हवाओं में अठखेलियां करता मैं,

अचानक से लड़खाने लगा था,

और गिरने लगा वापस ज़मीं की ओर।


अब हवाएँ तय करेंगी किस्मत इस पतंग का,

ज़मीं पर गिर मिट्टी में मिल जाना है,

या वापस किसी हाथों में खुद को सौंप,

आसमां को गले लगाना है।।


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