प्रिये
प्रिये
मैं शिव की धुनी में अर्पित महाश्मशान की लकड़ी हूँ,
तुम शिव के मस्तक पर स्थित शीतल पावन गंगा हो।
मैं साक्षात् आवाहन अग्नि देव का,
तुम परम शीतलता की मूरत हो।
मैं जन्म-जन्मान्तर से जल रहा,
तुम धरणी की प्यास बुझाती हो।
प्रिये, एक बूँद अपने अमृत का,
मुझ पर भी बरसा दो तुम।
अंतर्मन की इस असहनीय वेदना से,
मुझको मोक्ष दिलवा दो तुम।

