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Yashpal Singh

Abstract

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Yashpal Singh

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मज़दूर

मज़दूर

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मज़दूर ?

हाँ वही जो कल मर गया

कुछ दिन पहले चौदह और मरे थे

उसके पहले बारह,

और जाने कितने

कुछ चलते चलते मर गए,

कुछ सोते हुए


मैंने सुना है कि वो मर जाए

तो किसी को फ़र्क़ नहीं पड़ता।


मज़दूर ?

हाँ वहीँ जो आज भी

रास्तों में चले जा रहे हैं

रुकना, आराम करना

उनकी किस्मत नहीं शायद


वो तो चलते रहे हैं,

अनंत काल से बिन रुके, अथक

महामारी के पहले भी

और शायद उसके बाद भी


मैंने सुना है कि वो रुक जाए

तो देश रुक जाते हैं।


मज़दूर ?

हाँ वही, जिन्हें भारत

भाग्य विधाता कहते हैं

आज वहीं विधाता

अपना भाग्य हाथों में लिए


वो चले जा रहे हैं

अपने घरों की ओर

इस निष्ठुर संसार से बिना

किसी आशा के, अबाध्य।


मैंने सुना है कि वो चल दें

तो इतिहास बदल जाते हैं।


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