प्रिय डायरी (गजल)
प्रिय डायरी (गजल)
तसव्वुर के आईने में देखा हमने, चेहरा हिजाब का,
जैसे आज खुद जन्नत से उतर आया हो नूर शबाब का!
मुस्कुरा कर चल दिए वो,
जब हमने उनसे मांगा मोहब्बत में पर्चा हिसाब का!
तसव्वुर के आईने में…
हमने कहा, हटा दो हया की चिलमन अपनी झील सी आंख से;
जरा हम भी तो देखें उनकी आंखों का नूर अपने दिल के सूराख से!
वे कहते हैं – हम कैसे कहें आपको किस्सा नकाब का?
तसव्वुर के आईने में ....
हम उनके लिए बुरे बन गए क्योंकि हमने उनसे प्यार किया;
वे भी तो कातिल बन गए जब उन्होंने हमसे इनकार किया!
आज भी बेआबरू होकर पलटते हैं हम पन्ना किताब का!
तसव्वुर........
हम उनसे कहते हैं, आ जाओ हमारी जिंदगी में दोबारा,
वे कहते हैं, कैसे आएं; किसी और का हो चुका है पूरा जिस्म ये हमारा!
शायद इसलिए पूरे चिलमन में छुपा रखा है, हुस्न गुलाब का…
तसव्वुर के आइने…,,,,

