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केसरिया उमापति

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केसरिया उमापति

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काश...!

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कितनी मोहब्बत है हमें उनसे; काश! हम उन्हें ये बता पाते!

हमारे दृग में बसा है जो शख्स; काश! हम उन्हें ये दिखा पाते!!

कितनी मुहब्बत है….


हर्फ़ जो निकले उनके लब से,

हम चुनें हर लफ्ज़ को…चुने बड़े अदब से।

ताज़गी ऐसी, जैसे पीली धूप निकाल बिखेर दिया हो

फूलों में सहर ने अपनी जेब से।

उनकी ताजी खूबसूरती में हम; काश! फूलों को सजा पाते!

कितनी मोहब्बत है….


उनमें देखा जब हमने सौ चांदनी का गोरापन,

मन भीगा चटक गोरेपन में, सुलग उठा आवारापन।

दिल के मखमली तकिए से उड़ी जो रूई चाहत की,

जा टिका उनके गालों पर, ये हमारी इश्क की आहट थी।

वो उमा है म्हारे ख्वाबों की; काश! हम उनके शिव हो पाते!!

कितनी मोहब्बत….


हमारी इल्तिजा है तुझसे ओ मेरे पिया,

तू रंग दे हमें सांचे प्रीत के रंग में।

हम भीगें उस रंग में, औ' झूमें अफीमी वसंत में।

वो रंग हो लाल, या फिर हो केसरिया,

तू अलबेला साजन, हम बनें तेरी जोगी बावरिया।

इस प्रीत के रंग को उनके दिल में; काश! हम भी लगा पाते!

कितनी मोहब्बत है हमें उनसे; काश! हम उन्हें ये बता पाते!

हमारे दृग में बसा है जो शख्स; काश! हम उन्हें ये दिखा पाते!!

कितनी मोहब्बत है…


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