परिंदे
परिंदे
आज मिला मैं उन बच्चों से जिनके ख्वाब कहीं खोए हैं,
भूखी नंगी हालात में सड़कों पर वो सोए हैं,
सोचा क्या वजह है इनके इस हालात की,
जो बिखर गए हैं सपने इनकी उड़ान के,
सबके तरफ से इनके लिए निंदा है,
पर निंदा से क्या होता साब,आप क्यों नहीं शर्मिंदा है।
घर पर बैठे आप प्यार से रोटियां तोड़ जाते हैं,
उन्ही रोटियों के लिए ये मर मर के जी पाते हैं,
ना ही घर का मोह, ना ही किन्हीं से नाता है,
अपने पंखों के सहारे ये परिंदा सिर्फ उड़ान भरना चाहता है,
छोटी छोटी जरूरतों के लिए भी लोगों की निंदा है,
पर निंदा से क्या होता साब आप क्यों नहीं शर्मिंदा है।
भेदभाव उनसे ऐसा कि, ये कहीं के आरव हो,
अपने बच्चो से प्रेम, पर इन्हें लगते ये दानव हो,
अरे मानवता के नाम पर भी, ना ही किसी की रुचि है,
दिखावे की दुनिया में सिर्फ, शीर्ष पर इनकी सूची है,
समानता की लड़ाई के लिए भी लोगों में निंदा है,
पर निंदा से क्या होता साब आप क्यों नहीं शर्मिंदा हैं।
इन्हें इनके अधिकार पर पूरा पूरा स्वाभिमान हो,
आप ऐसा कुछ करो, जिससे आपका खुद में सम्मान हो,
इन बच्चो से उनकी मासूमियत ना छीनो,
जिंदगी जीने का इनका भी पूरा अधिकार हो,
धड़ पर कपड़े हो ना हो, पर सांसें इनकी जिंदा है,
हमें होना पड़े शर्मिंदा पर इनके लिए कभी ना निंदा हो।