पता नहीं क्यों
पता नहीं क्यों
जब भी देखता हूं तुम्हें,
आँखें थम सी जाती हैं मेरी
पता नहीं क्यों।
चाहता हूं की फेर लूँ नज़रे
तुमसे पर कमबख्त अटक
जाती है नज़रे सिर्फ तुम पे
पता नहीं क्यों।
दिन रात सुबह शाम,
हर वक़्त सोचता हूं तुम्हें
और ना चाहूं तो नादान
जज़्बात फिसल जाती हैं मेरी
पता नहीं क्यों।
लगता हो मानो कहीं खोए
है हम दोनों
मन कहता है नींद से उठ जा,
पर दिल का मन ही नहीं करता
पता नहीं क्यों।
क्या ये इक तरफ़ा इश्क़ है,
या जुनूनियत मेरी मालूम नहीं
पर जो भी हो दिल कहता कि
तुझपे सिर्फ मेरा हक है सिर्फ मेरा
पता नहीं क्यों।