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shiv kriti raj

Romance

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shiv kriti raj

Romance

पता नहीं क्यों

पता नहीं क्यों

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जब भी देखता हूँ तुम्हें,

आंखें थम सी जाती हैं मेरी,,

पता नहीं क्यों। 

चाहता हूँ की फेर लू नज़रे तुमसे

पर कमबख्त

अटक जाती है नज़रे सिर्फ तुम पे,,

पता नहीं क्यों।  

दिन रात सुबहो शाम,

हर वक़्त सोचता हूँ तुम्हें,,

और ना चाहूँ तो

नादान जज़्बात फिसल जाती है मेरी,

पता नहीं क्यों। 

लगता हो मानों कही खोए है हम दोनों,

मन कहता है नींद से उठ जा,

पर दिल का मन ही नहीं करता,

पता नहीं क्यों। 

क्या ये इक तरफा इश्क़ है,

या जुनूनियत मेरी मालूम नहीं,

पर जो भी हो दिल कहता कि

तुझ पे सिर्फ मेरा हक है सिर्फ मेरा,

पता नहीं क्यों। 


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