प्रेयसी
प्रेयसी


स्वप्न सुन्दरी भाग्योदय प्रेयसी हो तुम मेरी ,
विधि की सर्वोत्कृष्ट कृति तुम प्रियतमा मेरी !
बिखरी जुल्फें, मुख चन्द्र पर घनी अवलम्बित सी ,
बाहें परिधि मेरे कंठ पर शम्भू के गल भुजंग सी !
तुम आह्लादिनी सुरतरंगिनी शारदा स्वरूपा सी,
कलकंठ कलरव विहग कोकिल बयनि मधुवन सी !
तटिनी आलम्बन को समन्दर पिय से निर्बाध दौड़ती,
सुरभित प्रसून पराग गमक किसलय पाटल प्रभात सी!
मिश्रित होकर बयार में महकती मकरन्द सी,
भ्रमर गुँजार रस लोलुप सुवास नव कलिका सी!
नवरस प्रधान संयोग मिलन सुखद शृंगार मल्लिका सी ,
हास- विल
ास प्रवीण रति क्रीड़ा व्याकुल उन्मादी रमणी सी!
ओज माधुर्य प्रसाद त्रिगुणों की अविरल निर्झरणी सी ,
रूप माधुरी कटि मेखला पयोनिधि तटबन्ध सीमा सी !
अलंकृत मालोपमा उपमेय उपमान श्लेष सदृश सी ,
अहेतु विभावना उत्प्रेक्षा मानो अन्योक्ति विभाषित सी!
पग किंकणी नूपुर छनक गन्धर्व गान निनाद सी,
अधर मधुर मकरन्द पीयूष रस राजत देवांगना सी !
कजरारे कंज लोचन भ्रू विलास कामदेव पुष्पसर सी,
हृदय उल्लसित उतंग जलधि उतंग तरंग सदृश सी !
विधु बदनी नृतन प्रकृति नटी हिमाद्रि तनया लास्य सी,
मम उर वासिनी भव भय तारण भूमिजा जनक नन्दिनी सी!