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S Ram Verma

Romance

2  

S Ram Verma

Romance

प्रेम !

प्रेम !

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प्रेम है 

एक जंगली 

जानवर सा

जो चुपके से 

मन और तन 

को दबोच लेता है।

उम्मीदों की रोशनी

जलाता है ना चाहते 

हुए भी उससे बचा

नहीं जा सकता।

प्रेम है

उस कमर तोड़

बुखार सा जो 

सरसराता हुआ

रगों में दौड़ता है।

और हर दवा हर

वर्जना को तोड़ता 

हुआ घर कर लेता है।

वो हमारे मन तन और 

मस्तिष्क पर भी आखिर 

कोई कैसे और कब तक 

बच सकता है उस 

प्रेम से।


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