प्रेम
प्रेम
प्रेम की परिभाषाएं भले ही अलग- अलग हो सकती
हैं ,
लेकिन प्रेम तो बस प्रेम है ,
प्रेम अपने आप में प्रेम है।
प्रेम की सीमा अपरिमित है,
प्रेम की गहराई अनंत है!
प्रेम में दो व्यक्ति टूटकर भी जुड़ जाते हैं,
प्रेम में दो व्यक्ति खोकर भी पा लेते हैं।
सचमुच प्रेम अपने आप में प्रेम है ,
प्रेम बस प्रेम है।
न तो इसे पाया जा सकता है,
न ही इसे खोया जा सकता है।
इसे बस किया जा सकता है,
और इसे सिर्फ जीया जा सकता है।
क्योंकि प्रेम तो बस प्रेम है,
जिसे सिर्फ किया जा सकता है।
इसे सिर्फ जीया जा सकता है।