प्रेम विरह - वियोग : #SMBoss
प्रेम विरह - वियोग : #SMBoss
कैसे बयां करूं वो प्रेम विरह के किस्से
जो यादों के सिलवट में सिमट से गये
कुछ लम्हे दिल की पोटली में इठलाते से मचल रहे
अंगड़ाई लेती शामों में हमसफ़र का साथ
लगता था यूं जैसे दिया और बाती का प्यार
वो हर पल खिलखिलाती हंसी की गूंज
परस्पर प्यार से था हमारा वजूद
रस्मों रिवाजों से बंधा बेनाम न था हमारा रिश्ता
ना जाने क्यों दिलों में जज्बातों का फासला हो गया
खामोशी ही जीने का जरिया हो गया
"प्रेम विरह" में अब ये जाना
"विरह" है राधा का प्रेममय समर्पण
"विरह"ही है प्रेम की पराकाष्ठा
मनमीत के मिलन की आशा , यही सौगात है पाना!!!