प्रेम पत्र
प्रेम पत्र
यह न तू समझना
कि तुमसे प्रेम नहीं हूँ करता
करता हूँ आज भी मोहब्बत,
लेकिन तुमसे नहीं हूँ कहता।
रात के दिल में चांद है जैसे
वैसे तू है मन में मेरे।
उम्र की नहीं होती फासला,
मैं तुझे अपना घर जरूर ले आता।
न तू संध्या न तू सौम्या,
न हो पूरा, तो न हो अधूरा।
हो अगर तू जो मेरी,
तू वैष्णवी तुही राधा।
इस जन्म में न मिल पायें,
अगले जन्म में मिलने का है वादा,
तू मुझको सिर्फ भूल न जाना,
पूर्व जन्म का प्यार निभाना।
तू जब किसी से हँस कर बोलती हो,
पता है मेरे दिल पर क्या बितती है।
अगर तू मुझसे सच्चे प्यार करती तो,
गैरों से हँस-हँस बातें करती क्यों ?
मैं नहीं कुछ कह पाता हूं,
तो क्या मुझे वो सब अच्छा लगता है
प्यार में न साथ जी सके तो,
तो क्या तुझसे बिछड़ने का
मुझे मन करता है।
तेरे एक आँसू के कतरा पर,
अपनी हर खुशी कुर्बान कर दूँगा।
तू मुझसे प्यार तो कर,
तेरे लिए सबकुछ छोड़ दूँगा।
प्रेम दो आत्माओं का मिलन है,
इसमें शरीर नहीं शामिल है।
जो शरीर से है प्यार करते,
उनको हम स्वार्थी हैं कहते।
प्रेम अनवरत जन्म का फल है,
उसमें आकर्षण का न अवलंब है।
तू आज देख ले मेरे ह्रदय को,
सिर्फ तू ही तू का दंभ है।
न मैं कभी बदल पाउंगा,
न गैरों का हो पाउंगा,
बस न तू मुंह मोड़ कर चलना,
ठोड़ी सी मोहब्बत मुझसे भी करना।
तू एक इशारा कर दे तो,
मै पल भर में दुनिया बदल दूं।
अगर टूटने लगेगी तेरी साँसें तो
अपनी साँसें तेरी साँसों से जोड़ दूं।
प्रेमपथ का मैं पथिक हूँ,
जीवन पथ पर चल रहा हूं।
कर्मपथ पर चलने के लिए,
तेरी अनुमति मांग रहा हूँ।
तू अगर होती साथ मेरा तो,
पता चलता सत्रह साल
कोई कैसे रहता है।
हर एक आँसू, हर एक जख्म,
कैसे छिपा कर कोई जी पाता है।