व्यथा
व्यथा
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इस कलियुग में,
सच्चा प्रेम करने वाले
न मिल पाते है।
झूठ आडम्बर की
चक्कर में
हम सब भरमाते है।
न नर में है कृष्ण बसा,
न नारी में कोई राधा है।
अगर बनना चाहो तो,
उसमे भी कई बाधा है।
इस जहॉं में पैसे पर
बिकता प्यार खरीदता है।
जिस्म की अदा पर ओह!
मजनू मरते रहता है,
लैला की क्या बात करना,
कलियुग में लीला
निराली है।
डिस्को में है,
डान्स करती।
होटल में रात बिताती है।।
आज हमारे साथ है,
कल औरो की बारी है।
इस कलियुग में प्रेम की,
कथा बड़ी निराली है।।
