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Niranjan kumar 'Munna'

Romance

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Niranjan kumar 'Munna'

Romance

फिक्र न करो

फिक्र न करो

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फिक्र न करो

जो चले गए उन्हें जाने दो,

जो आतें हैं उन्हें आने दो,

ये प्यार - मोहब्बत की बातें,

सब खत्म हुआ उसे होने दो।


वो मेरे योग्य शायद थे ही नहीं,

वो मुझको कभी समझ पाए ही नहीं

अगर समझ पाते वो मुझे,

न दगा कभी दे जाते मुझे।

आज मुंह फेर कर वो चलते हैं,

अब गैरों पें वो मरते हैं।

कभी कृष्ण कहा मुझे करते थे।

जो खुद राधा न बन पाए कभी।।


जो पूर्व जन्म के थे प्रेमी,

पल- भर भी वो साथ न रह पाए कभी।

किसी गैर के खातिर आज,

अपनो को ठोकर मार गए अभी।

मैंने क्या बिगाड़ा था उनका

मैंने उनको था क्या कष्ट दिया?

ज्ञान के सिर्फ सागर में मैं,

उनको था मात्र स्पर्श किया।


कभी कल्पना की वो रानी थी,

न उसके बिना कोई कहानी थी,

थी मेरी वो चितवन ऐसी,

जैसी कोई प्रेम कहानी हो

नैनों में थी कुछ ऐसी छवि,

जैसे कवि की कविता हो।

आंखों में ऐसा दरिया था,

आंखें जैसे गंगा का पानी हो।


गालों पे ऐसी थी तिल सखी,

जैसे चांद की छिटक चांदनी

तेरी कोमल बातों की झड़ी,

आज भी याद निराली है।।

तेरी गुस्से की बात राधा,

आज भी कथा निराली है।

तेरे जीवन के सागर में,

न वसुधा की हरियाली है।।

अब चलें उस पथ पर हम,

जहां न कंटक कंकड़ हो।

सुहानी सी नई डगर पर अब,

धरा की नयी कहानी हो।।

         



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