काश
काश
हर दर्द की दवा
शायरी होती तो
क्या होता...?
न अश्क आंखों से
गिरा होता,
न बुझा - बुझा समां होता ।
काश! होती जीवन में
हर रंग की छटा,
न कभी मैं शायर होता
न कभी तू मेरी
शायरी होती।
इश्क होता
जीवन में इतना आसान तो
न तू बेवफा होती,
न मैं खफ़ा होता।
प्रेम की गहराई को
काश! तू ने समझ लिया होता
न अश्क आंखों से गिरा होता
न तुझसे कोई गिला होता।
काश! कभी समझ पायी
होती मेरी भावना को,
न ग़म का मैं खुदा होता,
नहीं तू कभी जुदा होता।
शायरी पढ़ कर
जरुर तू मुस्कुराई होगी
अभी गिरते हुए,
अश्क को छुपाई होगी...।
क्या कभी सोचा है?
ये लिखने वाला,
दर्द की कितने गहराई से
शब्द चुराया होगा।
काश! तूने दर्द मेरा
समझ लिया होता,
मैं तेरा होता,
तू मेरी होती।
हम कहीं इस जहां में...
भी रहे होते,
एक - दूसरे के दिल में
जरूर बसे होते।
.