प्रेम मिलन का सपना
प्रेम मिलन का सपना
बादल भी गरज गरज कर
पुकार रहे हैं तुम को
तुम बाहर निकलो
फिर झूम झूम हम बरसे
अपने प्रियतम के
इंतजार में ये अँखियाँ
क्यों एक पल भी अब तरसे
कली कली है आतुर
पंख खोलने को अपना
भंवर, आज तू पूरा कर ले
वर्षो से जो संजोया तूने
दिल में अपने
प्रेम-मिलन का सपना..!

