प्रेम मीठा या ....
प्रेम मीठा या ....
प्रेम गूंगे के गुड़ सा मीठा ही
नहीं ......
कड़वे करेले सा कसैला भी
होता है ...
ये मोहब्बत की चाँदनी रातों
सा चमकता ही नहीं ...
उदासी में डूबी रात के अंधेरे
सा भी होता है ...
प्रेम सिर्फ़ खुशी का भरम
ही नहीं ...
वह ग़म के ज़ुल्म और सितम
सा भी होता है ...
प्रेम खिलते गुलाब सा प्यारा ही
नहीं .......
काँटो से भरा हुआ गुलदस्ता सा
भी होता है ...
पर ये भी सच है जितना कोई समझाए
कि प्रेम राह पर न जाना ..
उतना ही प्रेम दीवाना इस प्रेम को गले
लगाता है ....।
