प्रेम के रंग
प्रेम के रंग
कृष्णा कहे राधा गोरी से आज
गोरे तन का गुमान तोडूंगा,
ऐसे रंग लगाऊंगा मुख पर
कोई ना पहचान पाएगा।
राधा कहे मेरे गलियों में आ के मिल
मुझको ना ढूंढ के पाएगा,
जैसे आएगा रंग ले के ब्रज में
वैसे ही वापस जाएगा।
कृष्णा कहे गर में चाहूँ तो
तुझे ना छुए रंग लगा सकूँगा,
फिर भी तेरे गलियों में आकर
रंग लगा के मैं आऊंगा।
राधा कहे जा जा रे तू बड़बोले
देखूंगी कैसे मुझे छूएगा,
मैं भी रखी हूँ रंग भरकर मटकी
पहले कौन किसको लगाएगा।
लगता है आज होली में आखिर
मजा बहुत ही आएगा,
मेरी तरह तुझ में भी तड़प है
आज प्रेम की रंग बिखरेगा।