प्रेम के क्षण
प्रेम के क्षण
प्रेम ही ईश्वर, प्रेम ही पूजा,
प्रेम ही है जीवन का क्षण ।
प्रेम के वश में ब्रह्म जगत है,
देव दनुज खग मृग व जन ।
प्रेम ही ऐसा आखर है जो,
जीवन सफल बनाता है ।
राजा, रंक, भिखारी भी,
इसके अधीन हो जाता है ।
इक विरह की प्रेम व्यथा यह,
मन विस्मित कर देती है ।
कौन है वह प्रेमी जो,
उसके रात की नींद चुराता है ।
सुंदरता उसका है अनुपम,
वाणी भी है सरस सरल ।
लगता है कोई राजकुंवर सा,
प्रेम को तरपे उसका नयन ।
क्षणभर में टूटे सब सपने,
बिखर गए मोती की तरह ।
हरपल, हरक्षण जला रही थी,
बिछुरन की वह प्रेम अगन ।
सपनों को वह अनुपम यादें,
मन पुलकित कर देती है ।
पर जब होता है अदृश्य वह,
अश्रुनयन भर देता है ।
काश ! न वह सपना होता,
तो फैलाती अपना आंचल ।
ईश्वर से मैं विनती करती,
हो जाता जीवन ये सफल ।

