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Kiran Kumari

Romance

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Kiran Kumari

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प्रेम के क्षण

प्रेम के क्षण

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प्रेम ही ईश्वर, प्रेम ही पूजा,

प्रेम ही है जीवन का क्षण ।


प्रेम के वश में ब्रह्म जगत है,

देव दनुज खग मृग व जन ।


प्रेम ही ऐसा आखर है जो,

जीवन सफल बनाता है ।


राजा, रंक, भिखारी भी,

इसके अधीन हो जाता है ।


इक विरह की प्रेम व्यथा यह,

मन विस्मित कर देती है ।


कौन है वह प्रेमी जो,

उसके रात की नींद चुराता है ।


सुंदरता उसका है अनुपम,

वाणी भी है सरस सरल ।


लगता है कोई राजकुंवर सा,

प्रेम को तरपे उसका नयन ।


क्षणभर में टूटे सब सपने,

बिखर गए मोती की तरह ।


हरपल, हरक्षण जला रही थी,

बिछुरन की वह प्रेम अगन ।


सपनों को वह अनुपम यादें,

मन पुलकित कर देती है ।


पर जब होता है अदृश्य वह,

अश्रुनयन भर देता है ।


काश ! न वह सपना होता,

तो फैलाती अपना आंचल ।


ईश्वर से मैं विनती करती,

हो जाता जीवन ये सफल ।




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