कर्म पथ
कर्म पथ
इतनी हसीन इस दुनिया में
गुमशुम होकर क्यों बैठे हो,
क्या पाया था जिसे खो दिया
किसके लिए तुम रोते हो।
अंबर को देखो रो-रोकर
अमृत सा जल बरसता है,
हर जीव-जंतु और मानव को
पानी दे प्यास बुझाता है।
अवनि को देखो चीर हृदय
फल-फूल अन्न उपजाती है,
जैसे माँ अपने बच्चों को
निज दूध पिला हर्षाती है।
पर्वत हिम से आच्छादित हो
दुख-दर्द सदा ही सहता है,
पर हर संकट में अडिग खड़ा
भारत का मान बढ़ाता है।
नदियों सी अविरल धारा बन
आगे बढ़ते ही जाएंगे,
मानवता को अपना करके
खुशियों के गीत हम गाएंगे।