नारी तेरे रूप अनेक
नारी तेरे रूप अनेक
तेरे प्रेम सुधा से चमके भारत के मानव हरेक,
नारी तेरे रूप अनेक।
मां के आंचल की छांव में सोई थी नन्हीं सी परी,
मुख मंडल तेरा मनमोहक चंचलता तुझ में थी भरी।
तेरी किलकारी से गूँजे घर आंगन का हर कोना,
पर मन को विचलित कर देता कभी कभी तेरा रोना।
भाई तुझ पर जान लुटाता बहना करती प्यार दुलार,
रही समाज की बेटी बनकर कभी नहीं करती तकरार।
एक दिन फिर ऐसा आया जब दुल्हन बन डोली में चढ़ी,
और पिता के घर आंगन को प्रियतम संग ससुराल चली।
फिर माता का रूप लिए बच्चों को तूने जन्म दिया,
गुरु की भांति शिक्षा दी उसको जीवन का हर मार्ग दिखाया।
हर पल, हर क्षण देना सीखें तेरे जीवन की यह रीत,
नारी तेरी है यह प्रीत।