सुखद स्मृति
सुखद स्मृति


बचपन की सुंदरतम यादें
संजोई हूं अब तक मन में
भूलूंगी नहीं सारी बातें
जब तक है प्राण मेरे तन में ।
दुख - दर्द, द्वेष का लेश नहीं
जीवन में कोई क्लेश नहीं
सर्दी - गर्मी की फ़िक्र नहीं
भौतिक सुख का कोई ज़िक्र नहीं।
कभी आम के बागों में
झूला करती दीवानी सी
तो कभी सुबह तालबों में
तैरा करती मनमानी सी।
सायं की बेला आती थी
हरि - कीर्तन में लग जाती थी
दादी मां की मीठी लोरी सुन
चैन की नींद सो जाती थी।
स्वर्णिम भविष्य के सपनों में
विचरण करती भूमंडल पर
आशा की नई उमंग लिए
सत्कर्म में लग जाती डट कर।
जब भी रहती तन्हाई में
खो जाती हूं गहराई में
कितना सुंदर मेरा अतीत
अब छूट न पाए उससे प्रीत।