प्रेम का शुभारंभ
प्रेम का शुभारंभ
जब मैंने अपनी पत्नी से
प्रेम का आरंभ किया
तब वह मेरी पत्नी न थी
वह एक नारी थी ...
मेरी निगाह में
लाचार एवं बेचारी थी
उसकी लाचारी देखकर
मैंने उसे गले लगाया
धीरे-धीरे फिर प्यार का
अर्थ समझाया
प्रेम ही जीवन की नींव है
ईश्वर को पाने की
एक मात्र तरकीब है
आज तो वह प्रेम में
इतना बढ़ गई
उसका प्रेम देख
मेरी त्योरियां चढ़ गई
अब तो उसका प्रेम
इतना परवान चढ़ा
उसने लांघी सीमा ...
मैं रह गया यहीं पड़ा ।।

