प्रेम गीत
प्रेम गीत
प्रेम पुष्पित है सवेरा, पल्लवित हो साँझ आई
कूकते है खग विहग भी, देख कुदरत की रुबाई ।।
भूमि का तन खिल रहा है ओढ़ चुनरी नेह वाली
बूंद बन वारिद बरसते झूमती है विटप डाली
बाग की अमराइयां भी महकती प्याली रसिक बन
अब बहारें आ गई लेकर, हवा पुरवाई वाली।।
आज अंबर से हुई है भूमि की प्रेमिल सगाई
कूकते है खग विहग भी, देख कुदरत की रुबाई ।।
रूप यौवन तेज दमके चंद्रमा सा ओज चमके
कांतिमय है हर नजारे पुष्प सा बन बाग महके
है दुखित अलि दल यहां पर पुष्प का रस पान करने
बोल मीठे पंछियों के सुन धरा का रूप बहके।।
हो रहा आभास मौसम ने नई कुछ राग गाई
कूकते है खग विहग भी, देख कुदरत की रुबाई ।।
चाल मतवारी हुई है आज देखो मोरनी की
कर रही कौतुक लुभावन लेय नीयत चोरनी की
मोर के मन की कसक भी जानती है वो मयूरी
प्रीत से मन को लुभाना है अदा चित चोरनी की ।।
मिल रहे सागर सरित भी रीत प्रीती की निभाई
कूकते है खग विहग भी, देख कुदरत की रुबाई ।।