परछाई...
परछाई...
सून तू चाँद की परछाई है
तेरे नूर में सागर की गहराई है .....
तेरा गुस्सा जैसे बादल
मैं खुली किताब जैसे पागल
आ पढ़ले मुझको तू मेरी तन्हाई है....
सूरज की किरण धरती छू लेती है
मेरी धडकन तेरा गीत गा लेती है
मोहब्बत की धून मेरे लबों पर आई है....
तुझसे ही जुड़े मेरे नग्मे
जग से प्यारे लगे इश्क़ के लम्हे
मेरी आशीकी भी क्या रंग लाई है.....
तू इश्क़ मेरा तू बन जा मेरी दुवा
संगम को तुझसे ईश्क हुवा
मेरे पर तू काबीज दिल पर छाई है.....

